रोहित कुमार सोनू
भारतीय पर्वों और अनुष्ठानों में प्रायः पंडित या पुरोहित की आवश्यकता होती है, जहाँ विशिष्ट मंत्रों और शास्त्रीय विधियों के अनुसार पूजा संपन्न कराई जाती है। लेकिन छठ पूजा इन सब से अलग और विशेष है। यह पर्व किसी मंत्रोच्चार, यज्ञ या पुरोहित पर निर्भर नहीं होता, बल्कि पूरी तरह व्रती की अपनी श्रद्धा, शुद्धता और लोक आस्था पर आधारित होता है।
व्रती ही होता है पुरोहित और यजमान
छठ पूजा में व्रती व्यक्ति स्वयं ही पूजा करता है।
✅ मंत्रों की जगह लोक गीत गूंजते हैं
✅ यज्ञशाला की जगह घाट और नदी का किनारा पवित्र स्थान बनता है
✅ शास्त्रीय विधियों की जगह भावनाओं की शुद्धता प्रमुख होती है
नहाय-खाय से लेकर खरना, संध्या अर्घ्य और उदयकालीन अर्घ्य तक सभी अनुष्ठान लोग स्वयं करते हैं, परिवार के सदस्य सहयोगी बनते हैं, और पूरा समाज एकजुट होकर भक्ति का वातावरण तैयार करता है।
मंत्र नहीं, विश्वास है आधार
छठ में किसी विशिष्ट वैदिक मंत्र की अनिवार्यता नहीं होती। व्रती लोक आस्था के साथ छठी मैया और सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करता है।
✨ लोकगीतों में ही भक्ति व्यक्त होती है
✨ गीतों की हर पंक्ति व्रती की श्रद्धा का रूप बन जाती है
✨ सरलता के साथ गहरी आध्यात्मिक अनुभूति का अनुभव होता है
छठ की विशिष्टता: तप, त्याग और सामूहिकता
छठ पूजा में व्रती का शरीर, मन और आत्मा तीनों शुद्ध होते हैं। निर्जला व्रत, सादगीपूर्ण जीवन और सामूहिक आराधना इस पर्व को आत्मशक्ति और समर्पण का प्रतीक बनाते हैं। समाज में किसी भी जाति या वर्ग का भेद नहीं होता, सभी मिलकर घाट सजाते हैं और एक-दूसरे की सेवा करते हैं।
क्यों है छठ पूजा सबसे पवित्र?
✅ इसमें मध्यस्थ नहीं, भावना और भक्ति ही सर्वस्व है
✅ व्रती स्वयं देवता का आह्वान करता है
✅ सामाजिक एकता और लोक-संस्कृति का अद्भुत संगम
श्रद्धा, संस्कृति और आत्मसमर्पण से जुड़ी छठ पूजा की हर जानकारी के लिए पढ़ते रहिए —
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