छठ पूजा: सूर्य देव और छठी मैया की आराधना का प्राचीन और पवित्र पर्व


छठ पूजा हिंदू परंपरा के सबसे प्राचीन और पवित्र पर्वों में से एक है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की आराधना के लिए मनाया जाता है और जल, वायु तथा सूर्य जैसी प्राकृतिक शक्तियों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता का प्रतीक है।

छठ पर्व की शुरुआत बिहार से हुई मानी जाती है, लेकिन आज यह न केवल बिहार बल्कि झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और नेपाल के कई हिस्सों में भी बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। यह पर्व इंसान और प्रकृति के बीच सामंजस्य और आभार की भावना को दर्शाता है।

छठ पूजा की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। प्राचीन ऋषि-मुनि सूर्य की उपासना को आत्मिक और शारीरिक शुद्धि का माध्यम मानते थे। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्यपुत्र कर्ण ने सबसे पहले इस पूजा की शुरुआत की थी। वे प्रतिदिन नदी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते थे। इसके अलावा, महाभारत में भी उल्लेख मिलता है कि द्रौपदी और पांडवों ने अपने कठिन समय में सूर्य की उपासना की थी। इन कथाओं से स्पष्ट होता है कि छठ पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि ऊर्जा, आत्मबल और शुद्धता का प्रतीक है।

छठ पूजा की जड़ें बिहार की संस्कृति में गहराई से समाई हुई हैं। यहां की नदियां—गंगा, कोसी और सोन—सूर्य और जल की पूजा के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती हैं। बिहार की धरती प्राचीन काल से ही अध्यात्म, कृषि और भक्ति का केंद्र रही है। यहां के लोगों ने प्रकृति को जीवनदाता माना है, और इसी भावना से सूर्य और जल के प्रति आभार प्रकट करने की परंपरा आरंभ हुई।

छठ’ शब्द का अर्थ होता है ‘छठा दिन’, क्योंकि यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। समय के साथ यह परंपरा बिहार से निकलकर पूरे देश और विदेशों में फैल गई।

मिथिला हिन्दी न्यूज



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