अपराध के खबरें

आखिर मंगल दोष है क्या?

पंकज झा शास्त्री 

मिथिला हिन्दी न्यूज :-यह जानना जरुरी है कि केवल मांगलिक दोष के जन्म पत्रिका में होने मात्र से ही दाम्पत्य सुख का अभाव कहना उचित नहीं है। 
सर्वप्रथम मांगलिक दोष किसे कहते हैं इस बात पर हम पाठकों का ध्यान आकृष्ट करना चाहेंगे। सामान्यतः किसी भी जातक की जन्मपत्रिका में लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में से किसी भी एक भाव में मंगल का स्थित होना मांगलिक दोष कहलाता है।
 लग्ने व्यये पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे।
कन्याभर्तुविनाशः स्याद्भर्तुभार्याविनाशनम्‌॥

कुछ विद्वान इस दोष को तीनों लग्न अर्थात्‌ लग्न के अतिरिक्त चंद्र लग्न, सूर्य लग्न एवं शुक्र से भी देखते हैं। शास्त्रोक्त मान्यता है कि मांगलिक दोष वाले वर अथवा कन्या का विवाह किसी मांगलिक दोष वाले जातक से ही होना आवश्यक है।
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य,शनि और राहु को अलगाववादी ग्रह एवं मंगल को मारणात्मक प्रभाव वाला ग्रह माना गया है। अतः लग्न, चर्तुथ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में स्थित होकर मंगल जीवनसाथी की आयु की हानि करता है। यहां हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि केवल मांगलिक दोष के होने मात्र से ही यहां जीवनसाथी की मृत्यु या दाम्पत्य सुख का अभाव कहना सही नहीं है अपितु जन्मपत्रिका के अन्य शुभाशुभ योगों के समेकित अध्ययन से ही किसी निर्णय पर पहुंचना श्रेयस्कर है किंतु ऐसा भी नहीं है कि यह दोष बिल्कुल ही निष्प्रभावी होता है।
 जन्मपत्रिका में ऐसी अनेक स्थितियां है जो मंगल दोष के प्रभाव को कम करने अथवा उसका परिहार करने में सक्षम हैं। इनमें से कुछ योगों के बारे में हम यहां उल्लेख कर रहे हैं।
 1. यदि किसी वर-कन्या की जन्मपत्रिका में लग्न,चर्तुथ,सप्तम,अष्टम और द्वादश स्थान में अन्य कोई पाप ग्रह जैसे शनि,राहु,केतु आदि स्थित हों तो मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।
 2. यदि मंगल पर गुरु की पूर्ण दृष्टि हो तो मंगलदोष निष्प्रभावी होता है।
 3. यदि लग्न में मंगल अपनी स्वराशि मेष में अथवा चर्तुथ भाव में अपनी स्वराशि वृश्चिक में अथवा मकरस्थ होकर सप्तम भाव में स्थित हो तब भी मंगलदोष निष्प्रभावी हो जाता है।
 4. यदि मंगल अष्टम भाव में अपनी नीचरशि में कर्क में स्थित हो अथवा धनु राशि स्थित मंगल द्वादश भाव में हो तब मंगल दोष निष्प्रभावी हो जाता है।
 5. यदि मंगल अपनी मित्र राशि जैसे सिंह,कर्क,धनु,मीन आदि में स्थित हो तो मंगलदोष निष्प्रभावी हो जाता है।
 6. यदि वर-कन्या की जन्मपत्रिका में मंगल की चंद्र अथवा गुरु से युति हो तो मंगलदोष मान्य नहीं होता है। 
 7. वर-कन्या की जन्मपत्रिका में लग्न से, चंद्र से एवं शुक्र से जिस मांगलिक दोष कारक भाव अर्थात्‌ लग्न, चर्तुथ, सप्तम, अष्टम व द्वादश जिस भाव में मंगल स्थित हो दूसरे की जन्मपत्रिका में भी उसी भाव मंगल के स्थित होने अथवा उस भाव में कोई प्रबल पाप ग्रह जैसे शनि, राह-केतु के स्थित होने से ही मांगलिक दोष का परिहार मान्य होता है। यदि वर-कन्या दोनों के अलग-अलग भावों मंगल अथवा मांगलिक दोष कारक पाप ग्रह स्थित हों तो इस स्थिति में मंगलदोष का परिहार मान्य नहीं होता है। किसी निर्णय को जल्दबाजी मे मान लेना उचित नही इसके लिये किसी योग्य से अपनी जन्म कुंडली का अध्यन करा लेना उचित होगा ।
Tags

إرسال تعليق

0 تعليقات
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

live