अपराध के खबरें

क्या आपको पितृदोष तो नहीं, जानिए पितृ दोष के लक्षण..

पंकज झा शास्त्री 

मिथिला हिन्दी न्यूज :-माना जाता है कि पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध कहते हैं। इन दिनों के बारे में मान्यता है कि पूर्वज अपने परिवारों में आते हैं और इस दौरान परिजनों द्वारा उनकी मुक्ति के लिए जो कर्म किया जाता है उसे श्राद्ध कहा जाता है। जिन परिवारों को अपने पितरों की तिथि याद नहीं रहती है उनका श्राद्ध अमावस्या को कर देने से पितर संतुष्ट हो जाते हैं। इस दिन शाम को दीपक जलाकर पूड़ी पकवान आदि खाद्य पदार्थ दरवाजे पर रखे जाते हैं। जिसका अर्थ है कि जाते समय पितर भूखे न जायें। इसी तरह दीपक जलाने का आशय उनके मार्ग को आलोकित करना है। कुछ लोग कौओं, कुत्तों और गायों के लिए भी भोजन का अंश निकालते हैं। मान्यता है कि कुत्ता और कौवा यम के नजदीकी हैं और गाय वैतरणी पार कराती है। जो लोग जीवन रहते माता पिता की सेवा नहीं कर पाते, यदि वह चाहें तो अपने पूर्वजों को श्राद्ध कर्म पूरी श्रद्धा के साथ करके प्रसन्न कर सकते हैं।
वेदों में कहा गया है कि सावन की पूर्णिमा से ही पितर मृत्यु लोक में आ जाते हैं और कुशा की नोकों पर विराजमान हो जाते हैं। पितृ पक्ष में हम जो भी पितरों के नाम का निकालते हैं, उसे वह सूक्ष्म रूप में आकर ग्रहण करते हैं। वेदों के अनुसार, मनुष्यों के पास यह एक मौका होता है कि यदि उनसे अपने पूर्वजों के प्रति कोई गलती हुई हो तो वह इस दौरान उसके लिए क्षमा मांग लें। पितर भी इस दौरान अपने बच्चों की सभी गलतियों को माफ कर देते हैं और उन्हें सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। श्राद्ध पक्ष से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता।

Tags

إرسال تعليق

0 تعليقات
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

live