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रक्षाबंधन कब है, जानें तिथि, शुभ मुहूर्त और संपूर्ण पूजा विधि

पंकज झा शास्त्री 

मिथिला हिन्दी न्यूज :- आंतरिक भय को नष्ट करने और आत्मबल के विस्तार का पर्व है श्रावण मास की पूर्णिमा, जो विश्व में भारतवंशियों के बीच रक्षाबंधन के रूप में प्रख्यात है। श्रावण मास की इस पूर्णिमा को कुछ जगह बलेव और नारियल पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर बलि राजा के अहंकार को ज़मींदोज़ कर दिया था। इसलिए यह पर्व ‘बलेव’ नाम से भी जाना जाता है। एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार अदिति के पुत्रों देवों और दिति के पुत्रों दैत्यों के युद्ध में जब देव कमज़ोर होने लगे, तब भयभीत देवों के हाथ में इंद्राणी ने रक्षासूत्र बाँध कर अभय का वरदान दिया था।

सहर के जानें माने ज्योतिष के जानकार पंडित पंकज झा शास्त्री के अनुसार
रक्षासूत्र प्रचलित रक्षाबंधन पर्व का प्रमुख घटक है। ये जहां अंतर्मन के भय को नष्ट करता है, वहीं विपरीत लिंगी सहोदरों यानी भाई बहन को भी परस्पर जोड़ कर समाज को एक सूत्र में पिरोता है। रक्षा बंधन सिर्फ़ भाई बहन के ही रिश्ते का पर्व नहीं है। ये गुरु-शिष्य सहित समस्त रिश्तों का सेतु और बल प्रदान करने का सूत्र है। इस दिन बांधा जाने वाले रक्षासूत्र की अवधारणा नितांत वैज्ञानिक है। पंडित पंकज झा शास्त्री ने यह भी बताया कि प्राचीन काल में रक्षाबंधन के लिए प्रयुक्त रक्षासूत्र बनाने के लिए केसर, अक्षत, सरसों के दाने, दूर्वा और चंदन को रेशम के लाल कपड़े में रेशम के धागे से बांध लिया जाता था। इन सब सामग्रियों के चयन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण समाहित है लिहाज़ा इन सामग्रियों में आध्यात्मिक चिकित्सकीय गुण छुपा नज़र आता है।

आध्यात्मिक ही नहीं राखी का चिकित्सीय फायदा भी है
रक्षासूत्र में रेशम मुख्य अवयय है। रेशम को कीटाणुओं को नष्ट करने वाला यानि प्रति जैविक माना जाता है, जिसे antibiotic कहते हैं। केसर को ओजकारक, उष्णवीर्य, उत्तेजक, पाचक, वात-कफ-नाशक और दर्द को नष्ट करने वाला माना गया है। सरसों चर्म रोगों से रक्षा करता है। यह कफ तथा वातनाशक, खुजली, कोढ़, पेट के कृमि नाशक गुणों से युक्त होता है। दूर्वा यानि दूब कान्तिवर्धक, रक्तदोष, मूर्छा, अतिसार, अर्श, रक्त पित्त, यौन रोगों, पीलिया, उदर रोग, वमन, मूत्रकृच्छ इत्यादि में विशेष लाभकारी है। चंदन शीतल माना जाता है, जो मस्तिष्क में सेराटोनिन व बीटाएंडोरफिन नामक रसायनों को संतुलित करता है। लिहाज़ा रक्षाबंधन की राखी में केसर भाई के ओज और तेज में वृद्धि का, अक्षत-भाई के अक्षत, स्वस्थ और विजयी रहने की कामना का, सरसों के दाने-भाई के बल में वृद्धि का, दूर्वा-भ्राता के सदगुणों में बढ़ोत्तरी का, और चंदन- भाई के जीवन में आनन्द, सुगंध और शीतलता में इज़ाफ़े का प्रतीक है। आज बाज़ार में सोने और चांदी की राखी भी नज़र आती है, जिनका न तो कोई वैज्ञानिक आधार है, न ही शास्त्रीय। सोना चांदी तो भौतिक और सतही समृद्धि के प्रतीक हैं। इतिहास गवाह है की संसार के सभी बड़े युद्ध और वैमनस्य के पीछे यही स्थूल दौलत रही है। भाई बहन का रिश्ता तो प्रेम का रिश्ता है।
वैसे रक्षा बंधन पर कई प्राचीन कथा मिलती है।

इसवार रक्षा बंधन धनिष्ठा नक्षत्र और शोभन योग में हो रहा है।
इस बार राखी बांधने का शुभ मुहूर्त रहेगा - 22/08/2021,रविवार।
प्रा 05:36 से दिन के 10:24 तक, इसके बाद दिन के 01:39 से दिन के 05:08 तक अति शुभ रहेगा। इस दिन पुर्णिमा तिथि संध्या 05:09 तक रहेगा।
उपरोक्त मिथिला क्षेत्रीय पंचांग अनुसार समय सारणी है वैसे अपने अपने क्षेत्रिय पंचांग अनुसार उपरोक्त समय में अंतर हो सकता है।

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