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भगवान शिव ने क्यों लिया था अर्धनारीश्वर अवतार? इस रोचक कथा का है हम सबसे संबंध, जानिए

पंकज झा शास्त्री 


अर्द्धनारीश्वर शिव का पूजन और इन्हें खुश करने के लिए ‘ऊं महादेवाय सर्व कार्य सिद्धि देहि-देहि कामेश्वराय नम: मंत्र का 11 माला जाप करना श्रेष्ठ माना गया है। भगवान शिव को कई अलग-अलग रूपों में पूजा जाता है। उन्हीं रूपों में से एक है उनका अर्धनारीश्वर रूप। भगवान शंकर के अर्धनारीश्वर अवतार में शिव का आधा शरीर स्त्री और आधा शरीर पुरुष का है। शिव का यह अवतार स्त्री और पुरुष की समानता को दर्शाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान शिव ने ये रूप अपनी मर्जी से धारण किया था। पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी को सृष्टि के निर्माण का जिम्मा सौंपा गया था, तब तक भगवान शिव ने सिर्फ विष्णु और ब्रह्मा जी को ही अवतरित किया था और किसी भी नारी की उत्पत्ति नहीं हुई थी। उन्होंने शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया। ब्रह्मा के कठोर तप से शिव प्रसन्न हुए और ब्रह्मा जी की समस्या के समाधान हेतु शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रकट हुए। अर्धनारीश्वर अवतार में शिव का आधा शरीर स्त्री और आधा शरीर पुरुष का था। शिव का यह अवतार स्त्री और पुरुष की समानता को दर्शाता है। जो कि शिव और शक्ति का प्रतीक है। सावन मास में इनकी विशेष पूजन से अखंड सौभाग्य, पूर्ण आयु, संतान प्राप्ति, संतान की सुरक्षा, कन्या विवाह, अकाल मृत्यु निवारण एवं अन्य कष्ट में नकारात्मक की कमी होगी और सकारात्मक लाभ मिल सकता है ।

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