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भक्तों को मनोवांछित फल देतीं वाणेश्वरी भगवती

संवाद 
मनीगाछी। तंत्र साधना के लिए विख्यात मिथिला में कुछ ऐसे स्थल भी हैं, जिनकी सिद्धपीठ के रूप में पहचान होने लगी है। इसमें मनीगाछी प्रखंड के भंडारिसम पंचायत स्थित वाणेश्वरी भगवती शक्तिपीठ के रूप में विख्यात हैं। मान्यता है कि सच्चे मन से जो इनके दर पर माथा टेकता है, वह खाली हाथ नहीं लौटता। गांव की सतह से पहले लगभग 10 फीट, लेकिन धीरे-धीरे भराव होने पर अब लगभग पांच फीट की ऊंचाई पर अवस्थित वाणेश्वरी परिसर को स्थानीय लोग डीह कहते हैं। 

यह एक ऐतिहासिक धरोहर है। कुछ विद्वान कर्नाटवंशीय शासकों के प्रशासकीय स्थल के रूप में इस डीह की चर्चा करते हैं। कुछ विद्वान राजा शिव सिंह के गढ़ से इस स्थल का संबंध मानते हैं। इस डीह से दो कि.मी दक्षिण घोड़दौर तालाब का पाया जाना, ठीक इसके बगल में गोढ़ियारी गांव एवं इस गांव के मात्र एक कि.मी पश्चिम राघोपुर गांव भी अवस्थित है। यह निश्चित ही किसी ऐतिहासिक घराने से संबंध रखता है। पाल कालीन देवी वाणेश्वरी की अप्रतिम मूर्ति स्वत: इसकी प्राचीनता का बोध कराती है। देवी वाणेश्वरी के संबंध में कहा जाता है कि शासक वर्ग के दुराचार व अत्याचार से मर्माहत कवि पंडित वाण झा की अतिसुन्दरी पुत्री वाणेश्वरी के प्रतिरोधात्मक स्वभाव से जोड़कर प्रस्तर रूप में परिणत होने की कथा प्रचलित है। मंदिर से सटे पूरब एक तालाब से देवी वाणेश्वरी की मूर्ति का निकलना, तो ठोस सत्य है। ग्रामीण इसी डीह पर एक पीपल के पेड़ के नीचे स्थापित कर पूजा-अर्चना शुरू की। कई भक्तों को अपनी इच्छा के अनुरूप फल की प्राप्ति हुई। 

इसके प्रमाण के रूप में वर्तमान मंदिर का निर्माण का निर्माण से जुड़ा हुआ है। दरभंगा के स्व. महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह की पत्नी महारानी लक्ष्मीवती ने इस देवी की पूजा-अर्चना कर देवी से अपने रामबहादुर श्रीनाथ मिश्र व देवर महाराज रमेश्वर सिंह के पुत्र प्राप्त होने की याचना की थी। दोनों को पुत्र प्राप्त होने पर इस स्थान पर महारानी ने एक भव्य मंदिर का निर्माण करा दिया। मंदिर पर लगे शिलापट के मुताबिक इसका निर्माण 1912 ई. में कराया गया है। वाणेश्वरी स्थान की ऐतिहासिक जनश्रुतियों के अलावा कई अन्य तथ्य प्रकट करते हैं। मंदिर में स्थापित भगवती समेत परिसर में रखी मूर्तियां अपने में अनेक ऐतिहासिक तथ्यों को समेटी हुई है। वाणेश्वरी स्थान मूर्तियों की बनावट तथा पत्थर की पहचान से इसका काल निर्धारण भी संभव है। प्राचीन मूर्तियों के अलावा इस स्थल के गर्भ से अनेक इतिहास सिमटे हैं। सड़क निर्माण के क्रम में चित्ती कौड़ी से भरा विशाल काला मटका सहित अनेक ऐसी वस्तुएं मिली है, जो हजारों वर्ष के इतिहास को दर्शाता है। शारदीय नवरात्र एवं रामनवमी में यहां धूम-धाम से विशेष पूजा होती है। हजारों कांवरिया सिमरिया घाट से गंगाजल लाकर भगवती का जलाभिषेक करते हैं। 

कन्या व ब्राह्मण भोजन का सिलसिला यूं तो सालों भर चलता रहता है, लेकिन नवरात्रा में इसकी अहमियत ज्यादा होती है। सिद्धपीठ वाणेश्वरी स्थान को डॉ. राममोहन झा, संजीव झा सहित अन्य लोगों के आंदोलन एवं जल संसाधन मंत्री संजय झा के सहयोग से सरकार के द्वारा इस स्थान को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। मुख्य पुजारी प्रवीण पाठक बताते हैं कि माता की महिमा अपरमपार है, जो कोई सच्चे मन से मां की आराधना करते हैं, उन्हें मां निराश नहीं करती और मनोवांछित फल देती हैं।

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