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फ़ुर्सत के पल में पढें : समस्यावो के भँवर में उलझा इंसान

अनूप नारायण सिंह 


मिथिला हिन्दी न्यूज :- इंसान के जीवन में ख़ुशी के साथ कई समस्याए भी उस बांसुरी की तरह है जो कई छेद के साथ खाली हैं।जब उपयोग करते है तो बांसुरी मधुर जादुई धुन पैदा करती है।आज हर शक्स को उस बाँसुरी धुन, गुरु मंत्र की तलाश है जिससे जिंदगी में नित्य उत्पन्न विभिन्न समस्यावो के भँवर में उलझन का समाधान हो जाए।सरकार हो या इंसान हर कोई समस्यावो के भँवर में युद्धरत है।वर्तमान समय में पूरे विश्व की मानव सभ्यता कोरोना महामारी के रूप में उत्पन्न समस्या से चिंतित एवं भ्यक्रांत है।केंद्र एवं राज्य सरकारे अपनी जनता के प्राण की रक्षा के लिय प्रयासरत है। साथ ही जनता भूखे नही रहे उसके लिए अनेको पैकेज, योजनाएँ की घोषणाएँ कर रही है।कल समाचार देख रहा था तो उसमें बताया जा रहा था कि लद्दाख़ में चीन निर्धारित एल॰ओ॰सी॰ के पाँचसौ मीटर के क़रीब अपना कैम्प लगाकर सैनिकों की बड़ी तादाद उपस्थित किया है।भारत इस नई उत्पन समस्या को लेकर चिंतित और समाधान के लिए प्रयासरत है।इस तरह सरकार , समाज या परिवार बराबर नित्य समस्यावो का सामना करते रहता है। किसी भी समस्या को पूर्णतया सुलझाने के लिए, हमें आरंभ में उसका मूल कारण समझना चाहिए।समस्या के मूल तक पहुंचकर जब समस्या का उचित और पूर्ण निदान का प्रयास किया जाता है, तभी वास्तविक उपाय तक पहुंचा जा सकता है।आधुनिक विज्ञान के अनुसार दुनिया में किसी भी इंसान में समस्या का कारण अति महत्वकांक्षा, सामाजिक, शारीरिक अथवा मानसिक प्रवृत्ति होता है।हर बच्चे अपनी पूरी क्षमता बुद्धि से शिक्षा ग्रहण कर रहे है।जब वे पढ़ाई के अंतिम पड़ाव की क़रीब होते है तो बेहतर नौकरी कैसे प्राप्त हो उनके मन में एक समस्या विचरण करने लगती है।कारण जिस अनुपात में बच्चे शिक्षा प्राप्त कर डिग्री प्राप्त कर रहे है उस अनुपात में नौकरी उपलब्धता नही है।इसका कारण तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या भी है।आज समाज में कई बच्चे एक साथ पढ़ते है।उन्मे आर्थिक सम्पन्नता, जीवनशैली, परिवेश एवं योग्यता में समानता रहती है परंतु सरकार के क़ानून नियम के कारण कुछ बच्चे नौकरी में चयनित नही हो पाते या उच्चपद पर नही पहुँच पाते है।आज ग़रीबी की सत्यता के साथ धरातल पर समीक्षा कर के क़ानून बनाना समय की माँग है।इंसान के जीवन में समस्या आती रहती है।हम उस समस्या को अच्छे से समझे तब निदान के लिए प्रयास करे।एक लोक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार एक व्यक्ति के जीवन में समस्याएं बहुत अधिक थीं। बचपन से ही उसे परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। पिता का देहांत हो चुका था और बचपन में ही माता, भाई-बहनों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी उसके ऊपर आ गई थी। बड़े होने पर व्यक्ति का विवाह हुआ, लेकिन शादी के बाद उसकी समस्याएं और अधिक बढ़ गईं। उसके जीवन में एक परेशानी खत्म होती तो दूसरी आ जाती थी। एक दिन वह प्रसिद्ध संत के पास गया।व्यक्ति ने संत से कहा कि मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं परेशान हो गया हूं, बहुत दुखी हूं। संत ने कहा कि ठीक तुम मेरे शिष्य बन जाओ। मुझे बताओ क्या समस्या है?।शिष्य ने कहा कि गुरुजी एक समस्या खत्म नहीं होती और दूसरी सामने आ जाती है, इस कारण मैं बहुत दुखी रहता हूं। किसी भी काम में सफलता नहीं मिल पाती है।गुरु ने कहा कि ठीक है, मैं तुम्हारी समस्याओं का हल बता दूंगा। अभी तुम मेरे साथ चलो। गुरु नए शिष्य को लेकर नदी किनारे गए। किनारे पर पहुंचकर गुरु ने कहा कि हमें ये नदी पार करनी है, ये बोलकर वहीं खड़े हो गए। शिष्य भी गुरु के साथ खड़ा हो गया।कुछ देर बाद शिष्य ने कहा कि गुरुदेव हमें नदी पार करनी है तो हम यहां क्यों खड़े हैं?। गुरु ने जवाब दिया कि हम इस नदी के सूखने का इंतजार कर रहे हैं, जब ये सूखेगी हम इसे आसानी से पार कर लेंगे।शिष्य को आश्चर्य हुआ। वह बोला, गुरुजी ये कैसी बात कर रहे हैं? नदी का पानी कैसे और कब सूखेगा।हमें नदी को इसी समय पार कर लेना चाहिए। संत ने कहा कि मैं तुम्हें यही बात समझाना चाहता हूं। जीवन में भी समस्याएं तो आती ही रहेंगी। हमें रुकना नहीं है, लगातार आगे बढ़ते रहना है। तभी तो हम उन्हें हल कर पाएंगे। आगे बढ़ते रहेंगे तो समस्याओं के हल मिलते जाएंगे। अगर रुक जाएंगे तो एक भी बाधा पार नहीं हो पाएगी। शिष्य को गुरु की बात समझ आ गई और उस दिन के बाद उसकी सोच बदल गई।आप किसी भी चुनौती का किस तरह से सामना करते हैं, ये अक्सर ही आपकी सफलता और खुशी का राज़ खोलता है। अगर आप भी किसी समस्या के हल को ढूँढने में अटके हुए हैं, तो पहले इसे समझने और इसे छोटे-छोटे भागों में बांटने की कोशिश करें। तय करें कि उस समस्या को लौजिकलि सुलझाना है या फिर आप पहले ये समझना चाहते हैं, कि इसका परिणाम आप के जीवन पर कैसा प्रभाव डालेगा।अनुभवी, सत्यनिष्ठ परिवार के लोगों के साथ मिलकर एक अलग ही रणनीति अपनाकर अपनी समस्या को सुलझाने के क्रिएटिव रास्तों की तलाश करें।आपकी समस्या को पहचानते वक़्त आपसे जितना बन सके स्पष्ट और समझदारी दिखाने की कोशिश करें। अगर ये किसी पर्सनल वजह से हो रहा है, तो अपनी समस्या के इस असली कारण को पहचानने के लिए भी स्वयं के साथ एकदम ईमानदार रहें।जीवन सफ़र में आपके पास सुलझाने के लायक बहुत सारी समस्याएँ हो सकती हैं और आपको पहले ये तय करना है, कि कौन सी समस्या को पहले सुलझाया जाए। किसी एक समस्या का हल आपको दूसरी समस्याओं में होने वाले तनाव से बचा सकता है।अपने साथ में एक और दूसरा प्लान लेकर चलें ताकि आप सिर्फ किसी एक ही समस्या समाधान के मार्ग पर न अटके रह जाएँ। देश, समाज या इंसान के सफ़र में ज़रूरी नही है कि हर समस्या का समाधान हो जाए।कई समस्यावो के समाधान में बड़ी क़ीमत भी चुकाने पड़ सकती है उसका भी विश्लेषण करना चाहिए। कही एसा नही हो कि समस्या का समाधान हो जाए परंतु आप बहुत कुछ खो दे जिससे मूल वजूद ही दुनिया में धूर्मिल हो जाए।हमें जीवन के कठिन समय में तुरंत प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए बल्कि उसे समझकर जवाब देना चाहिए। याद रखें जीवन में जो लोग खुश हैं वो इसलिए खुश नहीं हैं कि उनके जीवन में सबकुछ ठीक है बल्कि इसलिए ख़ुश हैं कि उनका समाज की स्थिति की समीक्षा कर के अपने को समस्या में भी संतुलित रखते है। समस्या से ज्यादा बड़ी समस्या है उसके प्रति तुरंत दी जाने वाली प्रतिक्रिया।किसी भी समस्या का समाधान बिना परिस्थितियों की समीक्षा , राष्ट्र - समाज, परिवार के लाभ - हानि की समीक्षा या बिना धरातल की सचाई को समझे नहीं करना चाहिए। अंत में कहूँगा :- कभी ख़ुशी की आशा,कभी मन की निराशा,कभी खुशियो की धूप, कभी हक़ीक़त की छाव, कभी समझौते के साथ, कभी कुछ खोकर भी जीने की आशा,शायद यही है जीवन के समस्यावो की परिभाषा।
       मृत्युंजय ।
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