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मुश्किलो को अपने हौसले से जीतकर आत्मनिर्भरता की मिसाल बनी शैली मिश्रा

अनूप नारायण सिंह 

मिथिला हिन्दी न्यूज :- अपने सपनों को जिन्दा रखिए अगर आपके सपनों की चिंगारी बुझ गई है तो यह समझ लो कि आपने जीते जी जीना छोड़ दिया। शैली मिश्रा आज बेटियो के लिये एक मिसाल है संघर्ष मे कभी अपना हौसला नही खोया अपने सपनो छोड़ा नही बल्कि एक विजेता की तरह पूरा किया है । 
शैली मिश्रा का जन्म बिहार के सहरसा जिले मे 5 जून को हुआ पिता एक पुलिस अधिकारी माँ पेशे शिक्षक है बचपन से ही मेघावी छात्रा रही औऱ दसवीं तक की पढ़ाई डी ए वी से हुआ औऱ वाराणसी के सनबीम स्कूल से बारहवी मे शानदार सफलता को प्राप्त किया माता पिता चाहते थे की उनकी बेटी एक अच्छी डॉक्टर बने तो इसकी तैयारी के राजस्थान के कोटा मे भेज दिया जहाँ अपनी मेहनत से शैली ने बहुत अच्छी तैयारी कर अपने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ा दिये पर ईश्वर को कुछ औऱ ही मंजूर था पिता की पोस्टिंग नक्सल प्रभावित क्षेत्र मे थी एक दिन अचानक एक ड्यूटी पर अप्रत्याशित घटना घटी औऱ उनका अपहरण हो गया बहुत तलाश के बाद भी उनकी कोई जानकारी नही मिली माँ अपनी दोनो बेटियो के साथ दर बदर भटक रही थी किसी भी प्रकार की कोई मदद नही मिली । 
शैली को अपनी पढ़ाई को छोड़कर माँ औऱ छोटी बहन के पास आना पड़ा औऱ पूरा परिवार आर्थिक तंगी के चपेट मे आ गया हर तरफ निराशा का परिस्थिति बनी हुई थी पिता के मिलने की आस अब परिवार खो चुका था बेबस माँ के लिये बेटी की चिंता हावी होने लगी जिस उम्र मे लोग करियर बनाने के सपने देखते है उस वक्त शैली के ऊपर परिवार को संभालने की जिम्मेदारी थी समाज औऱ रिश्तेदार उसकी शादी के लिये दबाव बनाने लगे ये वो दौर था जब उसको अपने जीवन का सबसे कठिन फैसला लेना था । शैली ने तय किया अब 
आधे रास्ते से लौटने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि लौटने पर आपको उतनी ही दूरी तय करनी पड़ेगी जितनी दूरी तय करने पर आप अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते है।जिन्दगी में कठिनाइयाँ हमे बर्बाद करने नहीं आती है, बल्कि यह हमारी छुपी हुई ताकत और शक्तियों को बाहर निकलने में हमारी मदद करती है। कठिनाइयों को यह जान लेने दो की आप उससे भी ज्यादा कठिन हो अगर हम चाहें तो अपने आत्मविश्वास और कठिन परिश्रम के बल पर अपना भाग्य खुद लिख सकते है और अगर हमको अपना भाग्य लिखना नहीं आता तो परिस्थितयाँ हमारा भाग्य स्वयं लिख देंगी औऱ उसने बच्चो को साईंस औऱ अंग्रेजी पढ़ाने से शुरुवात की औऱ धीरे धीरे उसके पास बड़े बड़े स्कूलों के बच्चे आने लगे औऱ जिंदगी पटरी पर आने लगी
 प्रतिभा की धनी शैली को एक बार एक प्रतिष्ठित स्कूल के वार्षिक समारोह मे मंच संचालन की जिम्मेदारी मिली इस कार्यक्रम बहुत से प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल थे जिनको शैली के मंच संचालन कार्यशैली बहुत पसंद आयी औऱ सहरसा मे हो रहे कोशी फिल्म फेस्टिवल मे मंच संचालन के निमंत्रित किया दो दिवसीय कार्यक्रम मे शैली के काम की बहुत तारीफ हुई सभी गणमान्य प्रसिध्द अतिथियो ने प्रोत्साहन किया लेकिन शैली को किसी प्रकार का आर्थिक सहयोग नही मिला जिससे उसने मंच संचालन का कार्य करना बंद कर दिया औऱ पुनः अपनी ट्यूशन के कार्य मे लग गयी लेकिन किस्मत मे जो लिखा हो वो कोई बदल नही सकता है कुछ दिनो बाद अचानक उसके पास एक फोन आता है कि एक बड़ी कंपनी उसको अपने साथ सारे इवेंट मे मंच संचालिका के रूप मे जोड़ना चाहती है उसके बाद पटना मे ही घर लेकर कर प्रशिक्षण लेते हुए आज एक प्रतिष्ठित मंच संचालिका के रूप स्थापित है । अपनी खूबसूरत प्रस्तुतिकरण से एक साल मे सबसे अधिक कॉरपोरेट इवेंट करने का रेकॉर्ड बनाया है अब बहुत सारी फिल्मो औऱ ऐड का ऑफर मिलने लगा लेकिन शैली मिश्रा को अभी उड़ान के लिये सिर्फ पंख ही मिले है उसकी सपनो कि मंजिल अभी दूर ही है मास कम्यूनिकेशन मे अपनी पढ़ाई पूरी करके देश प्रतिष्ठित संस्थानो मे अपनी पहचान बनाने के सपने के साथ जिंदगी को हर पल खुले दिल से जीने वाली शैली ने अपने जीवनशैली को हर उस बेटी के लिये मिसाल बना दिया है जो आत्म निर्भर बनना चाहती है। 
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