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कब है कुशी अमावस्या? जानें महत्व, तिथि और शुभ मुहूर्त

संवाद 
 कुश जो एक प्रकार से घास होता है यह बहुत पवित माना जाता है इसका उपयोग धार्मिक कार्यो से लेकर अन्य कार्य मे भी इस्तेमाल सालों भर किया जाता है। भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष अमावस्या को कुशी अमावस्या कहा जाता है। पंडित पंकज झा शास्त्री ने बताया कि वेदों और पुराणों में कुश घास को पवित्र माना गया है। इसे कुशा, दर्भ या डाभ भी कहा गया है। आमतौर पर सभी धार्मिक कार्यों में कुश से बना आसान बिछाया जाता है या कुश से बनी हुई पवित्री को अनामिका अंगुली में धारण किया जाता है।अथर्ववेद, मत्स्य पुराण और महाभारत में इसका महत्व बताया गया है।माना जाता है कि पूजा-पाठ और ध्यान के दौरान हमारे शरीर में ऊर्जा पैदा होती है। कुश के आसन पर बैठकर पूजा-पाठ और ध्यान किया जाए तो शरीर में संचित उर्जा जमीन में नहीं जा पाती। इसके अलावा धार्मिक कार्यों में कुश की अंगूठी इसलिए पहनते हैं ताकि आध्यात्मिक शक्ति पुंज दूसरी उंगलियों में न जाए। रिंग फिंगर यानी अनामिका के नीचे सूर्य का स्थान होने के कारण यह सूर्य की उंगली है। पंडित पंकज झा शास्त्री कहते है सूर्य से हमें जीवनी शक्ति, तेज और यश मिलता है। दूसरा कारण इस ऊर्जा को पृथ्वी मे जाने से रोकना भी है। पूजा-पाठ के दौरान यदि भूल से हाथ जमीन पर लग जाए, तो बीच में कुशा आ जाएगी और ऊर्जा की रक्षा होगी। 

इस बार मिथिला क्षेत्रीय पंचांग अनुसार कुशी अमावस्या (कुशोत्पाटन ) 14 सितम्बर,गुरुबार को होगा यानी कुश उखाड़ा जायेगा।
अमावस्या तिथि गुरु बार को पुरा दिन और रात रहेगा।

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