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पाकिस्तान में 11 साल बाद मारा गया सरबजीत का हत्यारा, अज्ञात गनमेन ने दागीं 21 गोलियां

संवाद 

पाकिस्तान के लाहौर में अंडरवर्ल्ड डॉन अमीर सरफराज की 'अज्ञात हमलावरों' ने गोली मारकर हत्या कर दी. अमीर कोट लखपत जेल वही है, जिसने ISI के इशारे पर पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय नागरिक सरबजीत की हत्या की थी.

पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में अमीर सरफराज ने सरबजीत की पॉलीथिन से गला घोंटकर और पीट- पीट कर हत्या कर दी थी. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के कहने पर अमीर ने सरबजीत को तड़पा-तड़पा कर मारा था. सरबजीत को पाकिस्तान में जासूसी के आरोप में पाकिस्तानी सेना ने पकड़ा था.

अब अमीर सरफराज की हत्या पर सरबजीत की बड़ी बेटी स्वपनदीप कौर का भी बयान आया है. उन्होंने कहा, 'कर्मों का फल यहीं पर मिल जाता है. उसे अपने कर्मों का ही फल मिला है. पाकिस्तान की एजेंसी ने साज़िश के तहत मेरे पापा की हत्या करवाई थी, हो सकता है अब उसी साज़िश के तहत उसकी भी हत्या करवाई हो.'

सरबजीत की बेटी ने कही ये बात

स्वपनदीप कौर ने कहा, 'उस वक्त और भी लोग इसमें शामिल थे. उस वक्त दुनिया को दिखाने की लिए एक ट्रायल भी चलाया था, जिसने उनको बरी भी कर दिया था. 1990 से हम कहते आए हैं, जब पापा ने गलती से बॉर्डर पार कर लिया था. उस वक्त एक मनजीत सिंह नाम से एक आदमी था, जिसने वहां पर अप्रैल में बॉम ब्लास्ट किया था और पापा को उन लोगो ने अगस्त में अरेस्ट किया था. तब इन लोगों ने पापा को मनजीत सिंह बना के अरेस्ट किया था और वहां की अदालत में पेश किया. आखिरी बार 2012 में उनकी चिट्ठी आई थी, उन्होंने बताया था कि उनको स्लो पॉइजन दिया जा रहा है.'

जासूसी के इल्जाम में हुई थी सजा

बता दें कि पाकिस्तान ने साल 1991 में लाहौर और फैसलाबाद में हुए बम धमाकों के बाद पंजाब के रहने वाले सरबजीत को आतंकवाद और जासूसी के इल्जाम में सजा-ए-मौत दी थी. लेकिन सजा से पहले ही अप्रैल 2013 में कुछ कैदियों ने सरबजीत पर हमला कर दिया था और 5 दिन बाद उन्होंने अस्पताल में दम तोड़ दिया.

सरबजीत ने चिट्ठी के जरिए सुनाई थी दास्तां

भारतीय नागरिक सरबजीत पाकिस्तान के कोट लखपत जेल में रहते हुए भारत भेजी अपनी चिट्ठी में लिखा थाः 'मुझे पिछले दो तीन महीनों से खाने में कुछ मिलाकर दिया जा रहा है. इसे खाने से मेरा शरीर गलता जा रहा है. मेरे बाएं हाथ में बहुत दर्द हो रहा है और दाहिना पैर लगातार कमजोर होता जा रहा है. खाना जहर जैसा है. इसे ना तो खाना संभव है, ना खाने के बाद पचाना संभव है'.

सरबजीत ने चिट्ठी तब लिखी थी, जब लाहौर के कोट लखपत जेल में दर्द बर्दाश्त से बाहर हो गया था लेकिन जेल अफसरों का कसाई से भी बदतर व्यवहार जारी था.

सरबजीत ने जेल में धीमा जहर देने की आशंका जताते हुए लिखा था कि 'जब भी मेरा दर्द बर्दाश्त से बाहर होता है और मैं जेल अधिकारियों से दर्द की दवा मांगता हूं तो मेरा मजाक उड़ाया जाता है. मुझे पागल ठहराने की पूरी कोशिश की जाती है. मुझे एकांत कोठरी में डाल दिया गया है और मेरे लिए रिहाई का एक दिन भी इंतजार करना मुश्किल हो गया है'.

सरबजीत की चिट्ठी के हर एक लफ्ज ने भिखीविंड के लोगों का कलेजा चाक कर दिया. खुद को बेगुनाह बताते हुए सरबजीत ने लिखा कि 'मैं एक बहुत ही गरीब किसान हूं और मेरी गिरफ्तारी गलत पहचान की वजह से की गई है. 28 अगस्त 1990 की रात मैं बुरी तरह शराब के नशे में धुत था और चलता हुआ बॉर्डर से आगे निकल गया. मैं जब बॉर्डर पर पकड़ा गया तो मुझे बेरहमी से पीटा गया. मैं इतना भी नहीं देख सकता था कि मुझे कौन मार रहा है. मुझे चेन में बांध दिया गया और आंखों पर पट्टी बांध दी गई'. सरबजीत पर पाकिस्तान की जेल में जुल्म होता रहा और कोर्ट में सारी शिकायतें नजरअंदाज की जाती रही.

कौन थे सरबजीत सिंह?

सरबजीत सिंह भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे तरनतारन जिले के भिखीविंड गांव के रहने वाले ‍किसान थे. 30 अगस्त 1990 को वह अनजाने में पाकिस्तानी सीमा में पहुंच गए थे. यहां उनको पाकिस्तान सेना ने गिरफ्तार कर लिया. तब उनकी उम्र 26 साल थी.

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